वाई -फाई तकनीक (Wi -Fi Techniques ),वायरलेस नेटवर्किंग तकनीकें (Wireless Networking Techniques )
1. वायरलेस लैन की संरचना (Architecture Of Wireless LAN )
अन्य वायरलेस नेटवर्कों की तरह वायरलेस लैन भी कई भागों से मिलकर बनता हैं। ये भाग निम्न प्रकार से हैं।
1. स्टेशन (Stations)
वे सभी तत्व जो किसी वायरलेस नेटवर्क से जुड़े सकते हैं ,स्टेशन कहे जाते हैं। सभी स्टेशनों में वायरलेस नेटवर्क इंटरफेस कार्ड (Wireless Network Interface Cards या WNICs ) लगे होते हैं।
वायरलेस स्टेशन दो प्रकार के होते हैं -एक ,एक्सेस पॉइंट (Access Points )और दो ,क्लाइंट (Clients).
एक्सेस पॉइंट वायरलेस नेटवर्क के बेस स्टेशन (Base Stations )होते हैं। वे रेडियो तरंगो को वायरलेस योग्य उपकरणों के लिए संप्रेषित करते हैं और प्राप्त करते हैं। वायरलेस क्लाइंट कोई भी चलायमान उपकरण हो सकता हैं ;जैसे -लैपटॉप (Laptop ),पर्सनल डिजिटल असिस्टेंट (Personal Digital Assistant ),आईपी फोन (IP Phones )या स्थिर उपकरण ;जैसे -डेस्कटॉप (Desktops )और वर्कस्टेशन (Workstation )जिनमे वायरलेस नेटवर्क इंटरफ़ेस की क्षमता हो।
2. बेसिक सर्विस सेट (Basic Service Set )
यह स्टेशनों का समुच्चय होता हैं ,जो आपस में संपर्क कर सकते हैं। प्रत्येक बेसिक सर्विस सेट की एक विशेष पहचान संख्या (Identification Number )अथवा ID होता हैं ,जो उस सेट को सर्विस देने वाले एक्सेस पॉइंट का मैक पता (MAC Address )होता हैं। बेसिक सर्विस सेट भी दो प्रकार के होते हैं -स्वतंत्र (Independent )और इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure ).
स्वतंत्र बेसिक सर्विस सेट (Independent BSS )ऐसा कामचलाऊ नेटवर्क होता हैं ,जिसमे कोई एक्सेस पॉइंट नहीं होता। इसलिए वे किसी अन्य बेसिक सर्विस सेट से संपर्क नहीं कर सकते। इंफ्रास्टक्चर बेसिक सर्विस सेट (Infrastructure BSS ) एक्सेस पॉइंट के द्वारा उस सेट से बाहर किसी भी स्टेशन से संपर्क कर सकते हैं।
3. एक्सटेंडेड सर्विस सेट (Extended Service Set )
कोई एक्सटेंडेड सर्विस सेट आपस में जुड़े हुए बेसिक सर्विस सेटों का समुच्चय होता हैं ,इसके एक्सेस पॉइंट एक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम से जुड़े होते हैं। डिस्ट्रीब्यूशन किया होता हैं।
4. डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (Distribution System )
कई डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम किसी एक्सटेंडेड सर्विस सेट में एक्सेस पॉइंटों को जोड़ता हैं। इसका उददेश्य नेटवर्क के क्षेत्र को बढ़ाना होता हैं ,ताकि उस क्षेत्र में रोमिंग (Roaming ) को
संभव बनाया जा सके।
2. वायरलेस लैनों के भेद (Type Of Wireless Lans )
वायरलेस लैन भी अपनी तकनीक अनुसार कई प्रकार के होते हैं। इनके बारे में आगे बताया गया हैं
1. पीअर -टू -पीअर (Peer -to -Peer )
यह एक कामचलाऊ नेटवर्क होता हैं ,जिसके स्टेशन आपस में केवल पीअर -टू -पीअर या
(P 2 P )विधि से संपर्क करते हैं। इनमे कोई बेस स्टेशन (Base Station )या एडमिनिस्ट्रेटर (Administrator )नहीं होता। ऐसा स्वतंत्र बेसिक सर्विस सेट (Independent Basic Service Set )का उपयोग करके किया जाता हैं।
पीअर -टू -पीअर नेटवर्क में विभिन्न उपकरण आपस में सीधे संपर्क कर सकते हैं। एक दूसरे की रेंज में आने वाले वायरलेस उपकरण किसी एक्सेस पॉइंट को बीच में डाले बिना एक दूसरे को खोज सकते हैं ,और सीधे संपर्क करके सूचनाओं या संदेशों का आदान प्रदान कर सकते हैं। तकनीक सामान्यता दो कंप्यूटरों द्वारा अपनाई जाती हैं ,जिससे की वे वायरलेस विधि से एक दूसरे से जुड़े सके।
2. ब्रिज (Bridge )
किसी ब्रिज का उपयोग भिन्न -भिन्न प्रकार के दो नेटवर्कों को आपस में जोड़ने के लिए किया जाता हैं। कोई वायरलेस इथरनेट ब्रिज किसी वायर्ड इथरनेट नेटवर्क और किसी वायरलेस नेटवर्क के उपकरणों में संपर्क बना सकता हैं। ब्रिज वास्तव में किसी वायरलेस लैन के लिए कनेक्शन पॉइंट (Connection point )कार्य करता हैं।
3. वायरलेस डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (Wireless Distribution System)
जब किसी नेटवर्क के सभी एक्सेस पॉइंटों को तारों द्वारा जोड़ना कठिन होता हैं ,तो एक्सेस पॉइंटों की जगह रेपीटर्स (Repeaters )का उपयोग करके ऐसा संभव बनाया जाता हैं। इसी को वायरलेस डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (Wireless Distribution System )कहते हैं।
4. वायरलेस नेटवर्किंग तकनीकें (Wireless Networking Techniques )
वायरलेस नेटवर्किंग के लिए कई प्रकार की तकनीकें अपनाई जाती हैं। इनमे से मुख्य तकनीकों का परिचय निचे दिया गया हैं।
1. वाई -फाई तकनीक (Wi -Fi Techniques )
अधिकतर वायरलेस नेटवर्क इस तकनीक को अपनाते हैं। यह तकनीक IEEE 802. 11 मानकों पर आधारित हैं। इसमें इंटरनेट का उपयोग करने की विशेष सुविधा उपलब्ध हैं ,802. 11 मानक दो लेयर परिभाषित करते हैं -एक ,भौतिक लेयर (Physical Layer )और दूसरा ,मैक (MAC :Media Access Control )लेयर। इसके मानकों में टकरावों (Collisions )कम से कम करने के प्रवधान किये गए हैं। क्योंकि कोई दो मोबाइल एक ही एक्सेस पॉइंट (Access Point )की रेंज में हो सकते हैं ,परंतु वे दोनों एक -दूसरे की रेंज में नहीं हो सकते। IEEE 802. 11 तकनीक में दो मौलिक कार्यकारी अवस्थाएँ होती हैं -
- एडहॉक मोड (Adhoc Mode ) - इसमें चलायमान इकाइयों (Mobile Units) के बिच पीअर -टू -पीअर (Pear -To -Pear ) संप्रेषण हो सकता हैं।
- इंफ्रास्ट्रक्चर मोड (Infrastructure Mode ) - इसमें चलायमान इकाइयाँ एक साझा एक्सेस पॉइंट के माध्यम से एक -दूसरे से संपर्क कर सकती हैं। वह एक्सेस पॉइंट किसी वायर्ड नेटवर्क और उस वायरलेस नेटवर्क के बीच संपर्क बनाने के लिए ब्रिज का कार्य भी करता हैं ,इस प्रकार के वायरलेस नेटवर्क सबसे अधिक प्रचलित हैं।
2. ब्लूटूथ तकनीक (Bluetooth Technique )
ब्लूटूथ एक वायरलेस प्रोटोकॉल (Wireless Prottocol )हैं ,जिसका उपयोग प्रायः शॉर्ट रेंज
कंयूनिकेशन (Short Range Communication )के लिए किया जाता हैं ,इससे बहुत कम दुरी पर
स्थित दो स्थिर (Fixed )या चलायमान (Mobile )उपकरणों के बीच डाटा संप्रेषण संभव हो जाता हैं। इससे प्रायः वायरलेस पर्शनल एरिया नेटवर्क (Wireless PAN )का निर्माण किया जाता हैं।
इस तकनीक द्वारा बहुत -से उपकरणों ;जैसे -मोबाइल फोन ,टेलीफोन ,लैपटॉप ,पर्सनल कंप्यूटर ,प्रिंटर ,जीपीएस रिसीवर (GPS Receivers ),डिजिटल कैमरा तथा वीडियो गेम कॉन्सोल आदि के बीच पूरी तरह सुरक्षित डाटा स्थानांतरण किया जारेडियो सकता हैं। इसमें बिना किसी लाइसेंस वाली इंटिस्ट्रयल ,साइंटिफिक और मेडिकल (ISM ) 2.4 जिगाहर्ट्ज शॉर्ट -रेंज रेडियो फ्रीक्वेंसी बैंडविड्थ
(Radio Frequency Bandwidth ) का प्रयोग किया जाता हैं। इसमें प्रयोग किये जाने वाले प्रोटोकॉल
IEEE 802. 15 द्वारा मानकीकृत किया गया हैं। ब्लूटूथ तकनीक के विवरण एक ब्लूटूथ स्पेशल इंटरेस्ट ग्रुप (Special Interest Group )द्वारा विकसित और लाइसेंस्ड किये जाते हैं। इस समूह में
टेलिकंयूनिकेशन ,कंप्यूटिंग ,नेटवर्किंग और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में कार्य करने वाली लगभग 150 कंपनियां शामिल हैं,जिनमे प्रमुख नाम हैं -नोकिया (Nokia ),इरेक्शन (Erection),
इंटेल (Intel ),तोशीबा (Toshiba ),माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft ),मोटरोला (Motrola )आदि।
इस तकनीक में कुछ खामियाँ भी हैं ,जैसे -
- इसकी रेंज बहुत काम होती हैं ,जिसके कारण बड़े वायरलेस नेटवर्क के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता।
- इससे डाटा स्थानांतरण की गति काफी धीमी होती हैं।
- इसमें रेडियो फ्रीक्वेंसी बैंड शेयर किया जाता हैं ,जिससे सुरक्षा कम हो जाती हैं और कोई भी व्यक्ति अपनी जानकारी बिना आपके मोबाइल या कंप्यूटर से सूचनाएँ चुरा सकता हैं।
3. इंफ्रारेड तकनीक (Infrared Technique )
यह तकनीक किसी एक उपकरण को किसी दूसरे उपकरण से जोड़ने के लिए काम में लाई जाती हैं। इसमें दो से अधिक उपकरणों को आपस में नहीं जोड़ा जाता। इस तकनीक में माइक्रोवेव
(Microwave )अथवा रेडियोवेव (Radiowave ) के बजाय इंफ्रारेड प्रकाश (Infrared Light )का प्रयोग आपस में संपर्क के लिए किया जाता हैं। अब इस तकनीक का प्रयोग प्रायः बंद हो गया हैं और
वाई -फाई (WI -FI ) अथवा ब्लूटूथ (Bluetooth )तकनीक का प्रयोग किया जाता हैं। आजकल अधिकांश उपकरण जैसे -लैपटॉप ,मोबाइल इन तकनीकों से युक्त आने लगे हैं।
4. रोमिंग (Roaming )
रोमिंग से हमारा तात्पर्य किसी नेटवर्क की सिमा में कहीं भी आने -जाने से हैं ,ताकि नेटवर्क से लगातार संपर्क बना रहे। किसी वायरलेस लैन में रोमिंग दो प्रकार की होती हैं-
1. आंतरिक रोमिंग (Internal Roaming ) - इस प्रकार की रोमिंग में कोई चलायमान स्टेशन (Mobile Station )केवल एक नेटवर्क की सीमा में एक एक्सेस पॉइंट (Access Point ) दूसरे एक्सेस पॉइंट तक स्वतंत्रता से गति कर सकता हैं हैं ,क्योंकि सिग्नल बहुत कमजोर होते हैं। इसमें दूसरा एक्सेस पॉइंट उस मोबाइल स्टेशन की वैधता को एक प्रोटोकॉल के माध्यम से किसी सर्वर से प्रमाणित कराता हैं और तब उसे एक्सेस प्रदान करता हैं।
2. बाहरी रोमिंग (External Roaming ) - इस प्रकार को रोमिंग में कोई चलायमान स्टेशन किसी अन्य वायरलेस सर्विस प्रोवाइडर (Wireless Service Provider )के वायरलेस नेटवर्क की सीमा में जाता हैं ,और उनकी सेवाएँ प्राप्त करता हैं। इसमें एक उपयोगकर्ता अथवा ग्राहक अपने मूल नेटवर्क से जुड़ा रहकर अन्य नेटवर्क की सेवाएँ ले सकता हैं। इसके लिए दोनों नेटवर्कों के बीच आपसी समझदारी और बिल के भुगतान का समझौता होता हैं।
हमने वायरलेस नेटवर्किंग के बारे में और जानकारी दी हुई हैं। आप लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। धन्यवाद।
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